BURNING NEWS ✍️ RAJESH SHARMA
भारत सरकार द्वारा बनाई गई गरीबों के लिए आयुष्मान स्कीम का फायदा गरीबों को नहीं बल्कि अरबों पति डॉक्टरों ने उठा लिया जो डॉक्टरों ने सरकार को मोटा रगड़ा लगाते हुए पैसा अपनी जेब में डाला जो विजिलेंस ब्यूरो चंडीगढ़ में की गई जांच के बाद इसका खुलासा हुआ है बिजनेस की जांच में खुलासा हुआ है कि आयुष्मान स्कीम के पैसे जोकि धोखे से डॉक्टरों ने अपने खातों में लिए हैं या ग्राहक के खाते में मंगवा कर उसमें से कमिशन ले गए। जांच में यह बात भी सामने आई है कि डॉक्टरों ने इलाज के बाद अगर बिल ₹10000 बना है तो उसका बिल लाखन पर बनाकर पीड़ित के खाते में पैसे मंगवा लिया और बाद में पीड़ित से अपनी कमीशन के तौर पर ज्यादा मोबाइल में पैसे वापस ले लिए जिसमें अब जालंधर के नामी अस्पताल और सुनामी डॉक्टरों का नाम सामने आ गया है जिन को जल्द ही मामला दर्ज कर जेल भेजा जाएगा।
विजीलैंस ब्यूरो के मुख्य डायरैक्टर और डी.जी.पी. बी.के. उप्पल ने बताया कि इस सम्बन्ध में दलजिन्दर सिंह ढिल्लों एस.एस.पी. विजीलैंस ब्यूरो, जालंधर रेंज जालंधर द्वारा एकत्रित की गई प्राथमिक जाँच के अनुसार आयुष्मान भारत स्कीम के अंतर्गत जालंधर, होशियारपुर और कपूरथला के कई बड़े नामी अस्पतालों द्वारा स्मार्ट स्वास्थ्य कार्ड धारकों के नाम पर मोटी रकमों के फर्जी डॉक्टरी बिल तैयार करके बड़े स्तर पर घपलेबाज़ी करके बीमा क्लेम हासिल किए जा रहे हैं। इन तीन जि़लों में कुल 35 सरकारी अस्पताल और 77 प्राईवेट अस्पताल इस योजना के अधीन राज्य सरकार द्वारा सूचीबद्ध किए गए हैं।
इफको टोकियो बीमा कंपनी से नकली क्लेम हासिल किए गए हैं और किए जा रहे हैं। प्राप्त आंकड़ों से और ठोस जानकारी के अनुसार जालंधर, होशियारपुर और कपूरथला जि़ले के 77 प्राईवेट अस्पतालों के 4,828 दावा इफको टोकियो हैल्थ इंशोरैंस कंपनी द्वारा पिछले एक साल के दौरान संदिग्ध होने पर रद्द किए गए हैं। इन रद्द किए गए दावों की कुल राशि 5,59,96,407 बनती है। इतने बड़े स्तर पर इन दावों का संदिग्ध होना विजीलैंस ब्यूरो की जाँच के दायरे में लाया गया है।
इसके अलावा जालंधर, होशियारपुर और कपूरथला जि़ले के 35 सरकारी अस्पतालों के 1,015 दावे इफको टोकियो हैल्थ इंशोरैंस कंपनी द्वारा पिछले एक साल के दौरान रद्द किए गए हैं। इन रद्द हुए दावों की कुल राशि 52,06,500 बनती है। सरकारी अस्पतालों में किए गए इलाज के क्लेम रद्द होना भी अपने आप में हैरानी भरा है, क्योंकि सरकारी अस्पतालों में किए गए इलाज का क्लेम किसी व्यक्ति विशेष को न जाकर राज्य सरकार के खाते में जाता है।