जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में भारतीय सुरक्षाबलों पर आत्मघाती हमले से ठीक एक दिन पहले, 13 फ़रवरी को ईरान के अशांत सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में रेवोल्यूशनरी गार्ड्स को ले जा रही एक बस पर आत्मघाती हमला हुआ, जिसमें ईरान के 27 जवान मारे गए थे.
सुन्नी मुस्लिम चरमपंथी समूह जैश अल-अद्ल ने इस हमले की ज़िम्मेदारी ली थी.
ईरान का सीधा आरोप है कि पाकिस्तान की फ़ौज और ख़ुफ़िया एजेंसी इन चरमपंथियों को पनाह देती है. ईरान ने पाकिस्तान को चेतावनी भी दी कि उसे इसकी भारी क़ीमत चुकानी होगी. लेकिन पाकिस्तान इस आरोप को ग़लत बताता है.
इस्लामाबाद में मौजूद बीबीसी संवाददाता आसिफ़ फ़ारूक़ी कहते हैं, ”ईरान और पाकिस्तान के रिश्ते बहुत जटिल हैं. कभी ऐसा लगता है कि दोनों भाई-भाई जैसे हैं. लेकिन बीते दिनों दोनों के रिश्तों में शत्रुता नज़र आई है.”
आसिफ़ फ़ारूक़ी कहते हैं, ”रेवोल्यूशनरी गार्ड्स पर चरमपंथी हमले के मामले में पाकिस्तान कहता है कि हमला करने वाला गुट ईरान में ही रहता है, जो दोनों देशों के बॉर्डर गार्ड्स को चकमा देकर सीमा के इस पार-उस पार आता-जाता है. पाकिस्तान का कहना है कि उन्हें फ़ौज या ख़ुफिया एजेंसी की मदद हासिल है, ये कहना पाकिस्तान के साथ ज़्यादती होगी.”
पाकिस्तान में बहुसंख्यक मुसलमान सुन्नी हैं जबकि ईरान में शिया मुसलमानों का बोलबाला है. यही वजह है कि पाकिस्तान और ईरान के संबंध में शिया-सुन्नी समीकरण अहम भूमिका अदा करते हैं