गोविंद सिंह ने अपने जीवन के 18 वर्ष करतारपुर साहिब में गुरुद्वारे के ग्रंथी के तौर पर गुज़ारे हैं.
तीर्थस्थल की पहली मंज़िल पर बने एक बड़े हॉल में अकेले बैठकर गुरू ग्रंथ साहिब का पाठ कर रहे हैं, कमरे की खास सजावट की गई है.
यह हॉल आम तौर पर तीर्थयात्रियों से खचाखच भरा रहता है, लेकिन जब से यहां करतारपुर साहेब कॉरिडोर के निर्माण का काम चल रहा है, इसे तीर्थयात्रियों के लिए बंद कर दिया गया है.
अपना पाठ पूरा करने के बाद गोविंद सिंह कमरे से बाहर निकले और एक खिड़की से बाहर देखने लगे. वे पिछले कुछ महीनों की गतिविधियों को देखकर हैरत में हैं. वे कहते हैं, “करीब एक साल पहले यह जगह अलग-थलग थी, हमसे मीडिया के लोग कभी बात नहीं करते थे, तब सब कुछ बहुत शांत था.”
आज दर्ज़नों ट्रक, क्रेन और डंपर पूरे इलाके में काम में जुटे हुए हैं. इमारत के चारों ओर की ज़मीन खोद दी गई है, सामने कीचड़ से भरी एक सड़क है जिसे पक्का बनाने का काम चल रहा है.
वे कहते हैं, “हमने कभी कल्पना नहीं की थी कि यह सरहद खुलेगी, यह तो चमत्कार है.”
इमरान खान के पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनने के मौके पर कांग्रेस पार्टी के नेता और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू जब अगस्त 2018 में पाकिस्तान आए तो किसी को अंदाज़ा नहीं था कि क्या होने वाला है.
जब सिद्धू पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा से गर्मजोशी से मिले तो भारत में उसकी राजनीतिक तौर पर आलोचना भी हुई लेकिन जब सरहद के खुलने की खबर आई तो भारत में सिख समुदाय में खुशी की लहर दौड़ गई.
28 नवंबर 2018 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कोरिडोर के निर्माण कार्य का उदघाटन किया, गोविंद सिंह ने बताया कि हम जहाँ खड़े हैं वहां से भारत की सीमा सिर्फ़ चार किलोमीटर दूर है और कोरिडोर बनने के बाद तीर्थयात्री बहुत आसानी से आ सकेंगे.
गोविंद सिंह ने उंगली के इशारे से दिखाया, “वो जो पत्थर दिख रहे हैं न, वहां रावी नदी के ऊपर 800 मीटर लंबा पुल बनने वाला है जिससे दोनों देशों की सीमाएं जुड़ जाएँगी.”
बताया जा रहा है कि निर्माण कार्य 40 प्रतिशत पूरा हो चुका है, गोविंद से बताते हैं, “यहां इतने लोग काम कर रहे हैं कि मैं गिन भी नहीं सकता, लोग अलग-अलग शिफ़्टों में 24 घंटे काम कर रहे हैं.”
प्रार्थना हॉल, बारादरी, यात्रियों के ठहरने के कमरे और लंगर की रसोई, इन सबको भी बड़ा बनाने का काम तेज़ी से चल रहा है.
यह सिखों के सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में गिना जाता है, यहां सिखों के पहले गुरू नानकदेव ने अपने जीवन के अंतिम 17 वर्ष यहीं बिताए और 16वीं सदी में उनका निधन भी यहीं हुआ.
गुरुद्वारे के बड़े सफ़ेद गुंबद को भी बेहतर बनाया जा रहा है. गोविंद सिंह बताते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले कुछ समय से चल रहे तनाव के बावजूद उन्हें पूरा भरोसा था कि उसका असर निर्माण कार्य पर नहीं पड़ेगा.