दुशमनो का नाश करने वाली माँ बगलामुखी जयंती कल:

BURNING NEWS✍️Rajesh Sharma

सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का ग्रंथ जब एक राक्षस ने चुरा लिया और पाताल में छिप गया तब उसके वध के लिए मां बगलामुखी की उत्पत्ति हुई। पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान मां का मंदिर बनाया और पूजा अर्चना की। पहले रावण और उसके बाद लंका पर जीत के लिए श्रीराम ने शत्रुनाशिनी मां बगला की पूजा की और वियज पाई। मां को पीतांबरी भी कहा जाता है। इस कारण मां के वस्त्र, प्रसाद, मौली और आसन से लेकर हर कुछ पीला ही होता है। युद्ध हो या राजनीति या फिर कोर्ट-कचहरी के विवाद, मां के मंदिर में यज्ञ कर हर कोई मन वांछित फल पाता है।

             हिंदू पौराणिक कथाओं में मां बगलामुखी को दस महाविद्याओं में आठवां स्थान प्राप्त है। मां की उत्पत्ति ब्रह्मा द्वारा आराधना करने की बाद हुई थी। मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा का ग्रंथ एक राक्षस ने चुरा लिया और पाताल में छिप गया। उसे वरदान प्राप्त था कि पानी में मानव और देवता उसे नहीं मार सकते। ऐसे में ब्रह्मा ने मां भगवती का जाप किया। इससे बगलामुखी की उत्पत्ति हुई। मां ने बगुला का रूप धारण कर उस राक्षस का वध किया और बह्मा को उनका ग्रंथ लौटाया।

त्रेतायुग में मां बगलामुखी को रावण की ईष्ट देवी के रूप में भी पूजा जाता था। रावण ने शत्रुओं का नाश कर विजय प्राप्त करने के लिए मां की पूजा की। लंका विजय के दौरान जब इस बात का पता भगवान श्रीराम को लगा तो उन्होंने भी मां बगलामुखी की आराधना की थी। बगलामुखी का यह मंदिर महाभारत काल का माना जाता है। इस मंदिर की स्थापना द्वापर युग में पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान एक ही रात में की थी।
 

यहां सर्वप्रथम अर्जुन एवं भीम ने युद्ध में शक्तियां प्राप्त करने और मां बगलामुखी की कृपा पाने के लिए विशेष पूजा की थी। मां बगलामुखी का मंदिर जिला कांगड़ा के बनखंडी गांव में है। पुजारी सचिन शर्मा बताते हैं कि मंदिर के साथ प्राचीन शिवालय में आदमकद शिवलिंग स्थापित है, जहां लोग माता के दर्शन के उपरांत जलाभिषेक करते हैं। यह मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। पांडुलिपियों में मां के जिस स्वरूप का वर्णन है, मां उसी स्वरूप में यहां विराजमान हैं। मंदिर के पुजारी ने बताया कि मां हल्दी रंग के जल से प्रकट हुईं थीं। पीले रंग के कारण मां को पीतांबरी देवी भी कहते हैं। इन्हें पीला रंग अति प्रिय है, इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग ही होता है। देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है।

साधक को मां बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करने चाहिए। मंदिर की हर चीज पीले रंग की है। यहां तक कि वस्त्र, प्रसाद, मौली, मंदिर का रंग भी पीला है। इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि प्राप्त होती है। इनके भैरव महाकाल हैं। मां बगलामुखी भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनकी बुरी शक्तियों का नाश करती हैं। पूजा और हवन का महत्व- देवी बगलामुखी में संपूर्ण ब्रह्मांड की शक्ति का समावेश है। शत्रुनाशिनी देवी मां बगलामुखी मंदिर में मुकदमों में फंसे लोग, पारिवारिक कलह व जमीनी विवाद को सुलझाने के लिए, वाकसिद्धि, वाद-विवाद में विजय, नवग्रह शांति, ऋद्धि-सिद्धि प्राप्ति और सर्व कष्टों के निवारण के लिए शत्रुनाश हवन करवाते हैं। इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है।

इंदिरा गांधी
राजनीति में विजय प्राप्त करने के लिए इस मंदिर में प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी पूजा कर चुकी हैं। वर्ष 1977 में चुनावों में हार के बाद पूर्व पीएम इंदिरा ने मंदिर में तांत्रिक अनुष्ठान करवाया। उसके बाद वह फिर सत्ता में आईं और 1980 में देश की प्रधानमंत्री बनीं। बतौर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, पीएम मोदी के बड़े भाई प्रह्लाद मोदी मंदिर में पूजा कर चुके हैं।

नोट फॉर वोट मामले में फंसे सांसद अमर सिंह, सांसद जया प्रदा, मनविंदर सिंह बिट्टा, कांग्रेसी नेता जगदीश टाइटलर, भूपेंद्र हुड्डा, राज बब्बर की पत्नी नादिरा बब्बर, गोविंदा और गुरदास मान जैसी हस्तियां यहां आ चुकी हैं। संकट के समय कॉमेडी किंग कपिल शर्मा भी यहां आ चुके हैं इस चार दिसंबर को मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जुगनाथ ने अपनी पत्नी कोबिता के साथ तांत्रिक पूजा और हवन करवाया