दोनों देशों की सुरक्षा को लेकर सहमति
वाशिंगटन । भारत और अमेरिका ने सुरक्षा व असैन्य परमाणु सहयोग को बढ़ावा देते हुए भारत में छह अमेरिकी परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने पर सहमति जताई हैं। बुधवार को दोनों देशों ने भारत-अमेरिका रणनीतिक सुरक्षा वार्ता के 9 वें दौर के समापन पर जारी एक संयुक्त बैठक में सहमति जताई। भारत की तरफ से विदेश सचिव विजय गोखले और अमेरिका के स्टेट फॉर आर्म्स कंट्रोल एंड इंटरनेशनल सिक्योरिटी विभाग की अंडर सेक्रेटरी एंड्रिया थॉम्पसन ने बातचीत में हिस्सा लिया। को।
दोनों देश के संयुक्त बयान में कहा गया, ” भारत में छह अमेरिकी परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना सहित द्विपक्षीय सुरक्षा और असैन्य परमाणु सहयोग को मजबूत करने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं।” आपको बता दें कि भारत और अमेरिका ने अक्टूबर 2008 में असैन्य परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग करने के लिए एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस सौदे ने द्विपक्षीय संबंधों को एक मजबूती प्रदान की। हालांकि बयान में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के बारे में कुछ ज्यादा जानकारी नहीं दी गई। लेकिन भारत में अमेरिका के इस रुख से तमाम संभावनाएं पैदा होती हैं।
जानकारी के मुताबिक सौदे का एक प्रमुख पहलू परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) था, जिसने भारत को एक विशेष छूट दी जिससे वह एक दर्जन देशों के साथ सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर कर सके। छूट के बाद, भारत ने अमेरिका, फ्रांस, रूस, कनाडा, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, यूके, जापान, वियतनाम, बांग्लादेश, कजाकिस्तान और दक्षिण कोरिया के साथ असैन्य परमाणु सहयोग समझौतों पर हस्ताक्षर किए है।
बुधवार को संयुक्त बैठक के दौरान अमेरिका ने 48-सदस्यीय एनएसजी में भारत की शुरुआती सदस्यता के लिए अपने मजबूत समर्थन की भी बात कही हैं। बता दें कि चीन ने भारत को एनएसजी में शामिल नहीं होने दिया था। वो भारत के परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकना चाहता है।
क्यों महत्व रखता है ये समझौता?
यह समझौता, ऊर्जा की कमी की समस्या का समाधान करने में सहायता करेगा जो भारत की बढ़ती विकास दर से संबंधित एक प्राथमिक समस्या के रूप में उभरी है। इस समय भारत की केवल 3 % ऊर्जा जरूरतें परमाणु स्रोतों से पूरी की जाती हैं। भारत की सन् 2020 तक परमाणु क्षेत्र से 20,000 एमडब्ल्यूई के उत्पादन की योजना है जो वर्तमान 3700 एमडब्ल्यूई के मुकाबले काफी अधिक है।